दो लम्हा प्यार का,
एक पल इंतज़ार का,
थोड़ी बेकरारी इकरार का,
मौसम है ये बहार का।
साथी मेरे पास तो आओ,
मेरे जिया को भी धड़काओ,
तुम मुझे अपना बनाओ,
सूखी बगिया को महकाओ।
मिलन की हसरत अधूरी है,
आज तो मिलना जरूरी है,
कहने का मौका मत दो कि,
हमारे दरमियाँ कोई दूरी है।
रास्ते बदल गए थे तो क्या,
मंज़िल तो बस मोहब्बत है,
साथ में वक़्त गुजारने की,
चाहत है, जरूरत है।
©नीतिश तिवारी।
9 Comments
वाह वाह नीतीश जी ! बहुत सुंदर, बहुत रूमानी अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteरचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteसमसामयिक, प्रेम रस में भीगी हुई रचना..
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteसरस श्रृंगार सृजन।
ReplyDeletebahut bahut dhnywad.
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।