दो लम्हा प्यार का,
एक पल इंतज़ार का,
थोड़ी बेकरारी इकरार का,
मौसम है ये बहार का।
साथी मेरे पास तो आओ,
मेरे जिया को भी धड़काओ,
तुम मुझे अपना बनाओ,
सूखी बगिया को महकाओ।
मिलन की हसरत अधूरी है,
आज तो मिलना जरूरी है,
कहने का मौका मत दो कि,
हमारे दरमियाँ कोई दूरी है।
रास्ते बदल गए थे तो क्या,
मंज़िल तो बस मोहब्बत है,
साथ में वक़्त गुजारने की,
चाहत है, जरूरत है।
©नीतिश तिवारी।
10 Comments
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (10-02-2021) को "बढ़ो प्रणय की राह" (चर्चा अंक- 3973) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।
Deleteवाह वाह नीतीश जी ! बहुत सुंदर, बहुत रूमानी अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteसमसामयिक, प्रेम रस में भीगी हुई रचना..
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteसरस श्रृंगार सृजन।
ReplyDeletebahut bahut dhnywad.
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।