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सुलझाना उसकी
जुल्फ़ों को
और बगिया से
फूल भी ले आना
गजरे की महक
साँसों में समाएगी
और याद आएगा
उसका मुस्कुराना
कोयल की कू कू
और उसके होठों
की हलचल
शोर मचाएगी तो
अपने दिल
को संभालना
भीगे बदन में
ठिठुरन जो होगी
मीठा सा दर्द होगा
उसे तुम सह जाना
ये सावन का मौसम
और बारिश की बूँदें
मोहब्बत में तुम
कुछ यूँ भींग जाना
©नीतिश तिवारी।
17 Comments
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 01 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteरचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteवाह!
ReplyDeleteशुक्रिया सर।
Deleteखूबसूरत रचना
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteवाह... बेहद ख़ूबसूरत कविता
ReplyDelete🌺🍀🌺
बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteबहुत शानदार सृजन।
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।