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सपनों का सौदा नहीं करते।

सपनों का सौदा नहीं करते
Pic credit: unsplash 

 














कमरे की दीवारें

ये छत, लाल पर्दा

सब मुझे घूरते हैं


सब जानने की कोशिश

में लगे हैं 

कि ये अकेला 

तन्हा होकर भी 

उनके साथ क्यों है


सजीव प्राणी भी आजकल

निर्जीव जैसा व्यवहार 

करने लगे हैं

इसलिए निर्जीव का ही

साथ देना मैंने उचित समझा


कम से कम ताना

तो नहीं मिलता

ये मेरे सपनों का

सौदा तो नहीं करते


उन्हीं सपनों का ज़िक्र

कर रहा हूँ

जो मैंने देखे थे

थोड़ा सा अपने लिए

थोड़ा किसी और के लिए


©नीतिश तिवारी।

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9 Comments

  1. मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!

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  2. वाह!सुन्दर सृजन।

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    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद!

      Delete

  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज गुरुवार (११-०५-२०२३) को 'माँ क्या गई के घर से परिंदे चले गए'(अंक- ४६६२) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद!

      Delete
  4. सजीव प्राणी भी आजकल

    निर्जीव जैसा व्यवहार

    करने लगे हैं

    इसलिए निर्जीव का ही

    साथ देना मैंने उचित समझा
    बहुत सुन्दर... सार्थक
    वाह!!!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद!

      Delete
  5. ये छत ये लाल परदा!
    जीवन संदर्भ पर गहन अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद!

      Delete

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