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Ghazal ka bahar lagta hai | ग़ज़ल का बहर लगता है।

Ghazal ka bahar lagta hai.




उसकी आहट से तो अब डर लगता है,

उसका इल्ज़ाम भी ग़ज़ल का बहर लगता है,

तन्हाई ने मोहब्बत की बस्ती यूँ उजाड़ दी,

वीरान जंगल भी मुझको मेरा घर लगता है।


Uski aahat se toh ab darr lagta hai,

Uska ilzaam bhi ghazal ka bahar lagta hai,

Tanhai ne mohabbat ki basti yu ujaad di,

Veeran jangal bhi mujhko mera ghar lagta hai.


©नीतिश तिवारी।

 

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10 Comments

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (31-07-2022) को   "सावन की तीज का त्यौहार"   (चर्चा अंक--4507)    पर भी होगी।
    --
    कृपया लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद।

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  2. बहुत अच्छा लिखते हैं आप

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    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद!

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  3. बहुत सुन्दर सृजन ।

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  4. वाह! अच्छी शायरी
    सादर

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