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Ban sakti hoon kitni bhi shatir | बन सकती हूँ कितनी भी शातिर।

Ban sakti hoon kitni bhi shatir
Photo: Shweta Tripathi


                  Ban sakti hoon kitni bhi shatir | बन सकती हूँ कितनी भी शातिर।


यूँ तो पहले आज से,

ऐसा किसी का इंतजार न था,

आज हुआ है मुझको जो,

ऐसा पहले प्यार न था।


जोगन बनके तड़पी हूँ,

साजन तेरी बाहों के ख़ातिर,

तुझको पाने की चाहत में,

बन सकती हूँ कितनी भी शातिर।


आ देख मेरी नज़रों में तू,

तेरे दीदार को ये प्यासी हैं,

खुशियों से दामन अब भर दे,

जीवन में बहुत उदासी है।


तेरे बाद किसी की चाहत ना रहेगी,

तुझ पर अर्पण करूँगी तन मन,

आधे तुम हो और आधी मैं,

आओ करें पूरा ये जीवन।


©नीतिश तिवारी।


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8 Comments

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(14-12-21) को "काशी"(चर्चा अंक428)पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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    Replies
    1. मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद!

      Delete
  2. प्रेम की कशीश को बिखरता लाजवाब सृजन।
    सादर

    ReplyDelete
  3. सुंदर समर्पित भावों वाली श्रृंगार रचना।

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  4. प्रेम का आधार लिए ... सुन्दर भावपूर्ण रचना ...

    ReplyDelete

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