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Cultural heritage of Jharkhand | झारखंड की सांस्कृतिक विरासत।

Jharkhand culture and heritage
Pic credit: cm.jharkhand.gov.in

 






Cultural heritage of Jharkhand | झारखंड की सांस्कृतिक विरासत।


कहते हैं मनुष्य आदिम युग से ही कला प्रेमी रहा है। भाषा ज्ञान के साथ ही उसमें कला भी आई। प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ होने के कारण ही वह स्वयं को सजाता संवारता रहा। किसी क्षेत्र की कला-संस्कृति उस क्षेत्र का दर्पण होता है, जिसमें लोगों की मानसिक स्थिति व सोच परिलक्षित होती है। देश के मानचित्र पर विविध आदि संस्कृति, जंगल और खनिज की प्रचुरता के रूप में अपनी पहचान सुनिश्चित करने वाले झारखण्ड राज्य की गोद में आदिकाल से कला-संस्कृति को संरक्षण मिलाता रहा है।

इसी संरक्षण और पोषण की प्रक्रिया ने  प्राचीन कला संस्कृति को विस्तृत क्षितीज प्रदान किया है। राज्य के सभी जिलों में सांस्कृतिक विविधता है। सांस्कृति विविधता के विविध आयामों ने देश के दायरे से निकलकर विदेशों में भी अपनी लोकप्रियता का परचम लहराया है। झारखंड राज्य अपनी  खनिज एवं वन संपदा, प्राकृतिक सौन्दर्य, कला-संस्कृति की स्वर्णीम परंपरा से सराबोर है। यह क्षेत्र सरल जीवन शैली पर आधारित जनजातिय संस्कृति का केन्द्र रहा है। आज की मशीनी सभ्यता एवं उपभोक्ता संस्कृति की जटिल मानसिकता से अछूते यहां के गांवों के सरल सीधे लोग मांदर और नगाड़े की ताल पर दिन भर की परेशानी को भूल जीवन में आनंद की तलाश करते हैं। 

कहते हैं झारखंड में चलना ही नृत्य एवं हंसना ही संगीत है । प्रकृति के सान्निध्य में रहने के कारण इस क्षेत्र के निवासियों का सौन्दर्य बोध तथा कला प्रेम अत्यंत प्रखर है। हृदय की प्रसन्नता की अभिव्यक्ति करने के लिए प्रत्येक रीति रिवाज और पर्व त्योहार के अवसर पर मांदर एवं नगाड़े की ताल पर उनके कदम थिरक उठते हैं, जिनका रसास्वादन करना जीवन का एक अनूठा अनुभव है ।  

झारखंड विभिन्न जातियों एवं धर्मालंबियों का अनूठा सांस्कृतिक संगम है । इस स्थली में सदान  ( झारखण्ड में बसनेवाले स्थानीय आर्य भाषी लोगों को सदान कहा जाता है ) एवं आदिवासियों की कला संस्कृति के अनूठे मिलन के कारण यह विश्व में अनुपम स्थान रखता है। 

हो, रिझा, माघे, फिरकाल, टुसू, दासाय, झूमर एवं छऊ सहित दर्जनों संगीत एवं नृत्य विधा हमारे पर्व त्योहारों के साथ जुड़े हुए है। हमारी विविध संस्कृति एवं परंपराऐं हमारी धार्मिक भावनाओं को संपुष्ट करने के साथ साथ हमारे मनोरंजन के साधन भी हैं। मकर, माघे, सरहुल सहित कई पर्वों से इनका सीधा संबंध है।


ये भी पढिए: महेन्द्र सिंह धोनी को मेरा पत्र।


©शाण्डिल्य मनिष तिवारी।


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8 Comments

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (13-08-2021) को "उस तट पर भी जा कर दिया जला आना" (चर्चा अंक- 4155) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद सहित।

    "मीना भारद्वाज"

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद!

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  2. सुंदर उपयोगी जानकारी |

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  3. बहुत विस्तृत जानकारी ।
    सुंदर पोस्ट।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद।

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