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मुक़म्मल मोहब्बत की दास्तान।













Pic credit : Google.






रात में नीले स्याही से तुम्हारा नाम लिखने की कोशिश करता रहा, लेकिन तुम्हारा नाम धुंधला नज़र आ रहा था। शायद स्याही भी बेवफ़ाई कर रही थी, बिल्कुल तुम्हारी तरह। पर मैं तेरे नाम को मिटने नहीं देना चाहता था, ना तो पन्ने से और ना ही अपने दिल से। इसलिए मैंने बार बार तुम्हारा नाम लिखा जब तक पन्ने पर तुम्हारा नाम साफ नजर नहीं आने लगा। फिर गौर से मैंने देखा तो तुम्हारे नाम में भी वही चमक बरकरार थी , वही चमक जब पहली बार तुम मिली थी। इतना प्यार है हमें तुमसे फिर भी बहुत खफा खफा रहती हो, शायद ये नाराज़गी लाजमी है। मैं ही तो तुम्हें वक़्त नहीं दे पा रहा हूँ। जिम्मेदारियों के बोझ ने वक़्त को कम कर दिया है। पर मैं कोशिश कर रहा हूँ ,जिंदगी को साथ लेकर चलने की, तुम्हें साथ लेकर चलने की। एक दिन होगी मुलाकात, फिर वही नहर के किनारे, शाम के डूबते किरण के साथ। और फिर से हमारा प्यार मुकम्मल हो जाएगा।

©नीतिश तिवारी।

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13 Comments

  1. आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 16 मार्च 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (15-03-2019) को दोहे "होता है अनुमान" (चर्चा अंक-3275) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सर।

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  3. प्यार मुकम्मल जरूर होगा नीतीश जी। सादर।

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  4. बहुत सुन्दर
    सादर नमन

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  5. Really awesome blog i seen in my life. Awesome layout and fully mobile responsive with best colorsChaluBaba

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