शायद प्रेम में...

तुम्हारे पुलकित प्रेम में, वैसे तो मैं हर प्रश्न का उत्तर दे पाता हूँ। लेकिन ना जाने क्यों तुम्हारे प्रश्नों के सामने मैं निरुत्तर हो जाता हूँ। शायद प्रेम में कुछ ऐसा ही होता होगा। सुबह से शाम हो जाती है शाम से रात और और रात से सुबह। हर पहर में सिर्फ तुम याद आती हो। शायद प्रेम में कुछ ऐसा ही होता होगा। समंदर नदी को अपने में समेटती है, और मैं तुझमें समा जाता हूँ। शायद प्रेम में कुछ ऐसा ही होता होगा। ©नीतिश तिवारी।