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उसकी ख़्वाहिश मक़बूल की थी, उसे हार था पहनाया,
मेरी इस दिलदारी का उसने खूब था फायदा उठाया,
मेरे क़त्ल की तारीख़ उसने कुछ यूँ मुक़र्रर कर दी,
उसने शादी का न्योता अपने यार से था भेजवाया।
Uski khwahish maqbool ki thi, use haar tha pahnaya,
Meri iss dildaari ka usne khoob tha fayada uthaya,
Mere qatl ki tareekh usne kuch yun mukarrar kar di,
Usne shadi ka nyota apne yaar se tha bhejwaya.
इश्क़ की अदालत में हूँ, आज मेरे मोहब्बत की सुनवाई होगी,
गुनाह-ए-इश्क़ की सजा मिलेगी या आज मेरी रिहाई होगी,
मुक़दमा हो गया तो क्या मुझे आज भी भरोसा है उस पर,
जरा पता तो करो यारों, वो ये सब देखने जरूर आई होगी।
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Ishq ki adalat mein hu, aaj mere mohabbat ki sunwai hogi,
Gunaah-e-ishq ki saja milegi ya aaj meri rihai hogi,
Muqadama ho gaya toh kya, mujhe aaj bhi bharosa hai uss par,
Jara pata toh karo yaaron, wo ye sab dekhne jarur aayi hogi.
©नीतिश तिवारी।
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10 Comments
दोनों मुक्तक सुन्दर हैं।
ReplyDeleteधन्यवाद सर।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 29 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteरचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।
Deleteदोनों मुक्तक बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया सर।
Deleteलाजवाब, खूबसूरत मुक्तक शुभप्रभात
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
Deletevaah
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।