कहते हैं वक़्त हर ग़म भुला देता है,
फिर मैं तुम्हे क्यों नहीं भूल पाता हूँ।
शायद तुम ग़म नहीं एक खुशी थी,
मेरे चेहरे की हंसी थी।
तुम एक कहानी थी,
मेरी ज़िन्दगी की रवानी थी।
तुम एक ख्वाब थी,
जो पूरा होते-होते रह गया।
तुम एक गुलाब थी,
जो खुलकर महक ना सका।
तुमसे बिछड़कर मैं गीत कोई
गा नहीं पाता हूँ।
मैं तुम्हे भुला नहीं पाता हूँ।
©नीतिश तिवारी।
4 Comments
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (04-01-2018) को "देश की पहली महिला शिक्षक सावित्री फुले" (चर्चा अंक-2838) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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नववर्ष 2018 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।
Deleteतुम एक कहानी थी,
ReplyDeleteमेरी ज़िन्दगी की रवानी थी।
तुम एक ख्वाब थी,
जो पूरा होते-होते रह गया।...वाह ग़़़़़ज़ब
आपका शुक्रिया।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।