नया किरदार बनके उभरा हूँ मैं ।

मुझे आशिकी की लत् तो नहीं थी। बस खो गए थे तेरी निगाहों में।। वो सफर भी कितना हसीन था। जब सो गए थे हम तेरी बाहों में।। वक़्त गुजरा मोहब्बत मुक्कमल हुई। मेरी साँस घुल गयी थी तेरी साँसों में।। बड़ी आसान लगने लगी मंज़िल मेरी। तूने मखमल जो बिछाये मेरी राहों में।। फुर्सत नहीं मुझे दिल्लगी से अब। हर वक़्त रहता हूँ तेरे खयालों में।। नया किरदार बनके उभरा हूँ मैं अब। क्या खूब तराशा है तूने मुझे।। ©नीतिश तिवारी।