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क्यों गाँव मेरा वीरान हो गया?



क्यों गाँव मेरा वीरान हो गया?
गुजरे वक़्त का एक पैगाम हो गया,
लोग तो अब भी हैं मौजूद मगर,
ये जैसे बिखरा हुआ सामान हो गया।

कुछ हलचल कम है,क्योंकि
लोग अपने में मग्न हैं,
अब वो मस्ती कहाँ,
अब वो चौपाल कहाँ,
रोजी रोटी के चक्कर ने,
सबको कर दिया बेबस है,
शायद यही ज़िन्दगी का सबब है।

बरसाती मेढ़क भी नहीं आते अब तो,
शायद उनको भी कुछ खबर हो गया,
वक़्त की ऐसी मार पड़ी है दोस्तों,
मेरा गाँव भी अब शहर हो गया।

कलम मेरी रुकने लगी,
आंसू क्यों मुझे आने लगे,
मेरा गावँ मेरा घर,
क्यों मुझसे दूर जाने लगे।

©नीतिश तिवारी।


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6 Comments

  1. पुरानी यादें बार बार उन्ही जगहों पे लेजाती हैं .. पर बदलाव सब कुछ बदल चूका है ...

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    1. बिल्कुल सही कह रहे हैं आप।

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  2. सही लिखा है आपने गाँव भी अब बहुत वदल गए हैं.

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद।

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