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वो कयामत थी या...



















घर से बाहर जब मैं धूप में निकला,
सारा खजाना उसकी संदूक में निकला,
कहता फिरता था की मैं पाक साफ हूँ,
दुनिया का सबसे बड़ा रसूख वो निकला.

ना मोहब्बत थी ना मैने होने दी,
फिर भी उसकी नज़र में शरीफ ना निकला,
वो कयामत थी या ना जाने खुदा,
हर चेहरा उसकी उम्मीद में निकला.


नीतीश तिवारी

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8 Comments

  1. आपका आभार सर जी

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  2. खूब! बहुत खूब! हाले दिल ...

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    1. शुक्रिया कविता जी

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  3. Bahut khoob prastuti. Dusari aur chouthy pnkti lajawaab thi !zb

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  4. एक नए अंदाज एवं शैली में प्रस्तुत आपकी पोस्ट अच्छी लगी। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा।धन्यवाद।

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