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वो मेहनत करते हैं,
वो मजदूरी भी करते हैं,
दो वक्त की रोटी खातिर
जाने कितने पत्थर तोड़ते हैं।
मौसम कोई भी हो,
वो कभी नहीं थकते हैं,
हर परिस्थिति से वो,
जमकर लड़ते हैं,
अपना घर चलाने को,
दूसरों के घर बनाते हैं,
कोई शिकायत नहीं करते,
दिहाड़ी लेकर चले जाते हैं।
भविष्य के लिए नहीं जीते,
वर्तमान को सुंदर बनाते हैं,
सुबह से शाम मेहनत करते,
ऐसे लोग मजदूर कहलाते हैं।
©नीतिश तिवारी।
ये भी देखिए।
14 Comments
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 15 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteरचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
DeleteBahut sundar!
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteदूसरों के ब्लॉग पर भी अपनी टिप्पणी दिया करो।
जी जरूर।
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया।
DeleteWaah bahut khub
ReplyDeleteआपका शुक्रिया।
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17 -3-2020 ) को मन,मानव और मानवता (चर्चा अंक 3643) पर भी होगी,
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
DeleteAise log mjdoor to khlate hai Lekin bhagyoday bhi karte hain. Sundar rachna
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।