वो कयामत थी या...
घर से बाहर जब मैं धूप में निकला,
सारा खजाना उसकी संदूक में निकला,
कहता फिरता था की मैं पाक साफ हूँ,
दुनिया का सबसे बड़ा रसूख वो निकला.
ना मोहब्बत थी ना मैने होने दी,
फिर भी उसकी नज़र में शरीफ ना निकला,
वो कयामत थी या ना जाने खुदा,
हर चेहरा उसकी उम्मीद में निकला.
नीतीश तिवारी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (05-10-2014) को "प्रतिबिंब रूठता है” : चर्चा मंच:1757 पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका आभार सर जी
Deleteचकित हूँ !
Deleteऐसा क्यूँ ?
Deleteखूब! बहुत खूब! हाले दिल ...
ReplyDeleteशुक्रिया कविता जी
DeleteBahut khoob prastuti. Dusari aur chouthy pnkti lajawaab thi !zb
ReplyDeleteaapka bahut bahut aabhar pari ji
Deleteएक नए अंदाज एवं शैली में प्रस्तुत आपकी पोस्ट अच्छी लगी। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा।धन्यवाद।
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