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Sergei Eisenstein (सेर्गे आइसेन्स्टाइन) - फादर ऑफ मोंटाज।





    परिचय।
   
सर्गेई मिखाइलोविच आइसेन्स्टाइन  का जन्म २२ जनवरी 1898 को रूस के रिगा नामक स्थान में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। इनके पिता एक मशहूर वास्तुकार थे। जब 1905 में प्रथम रुसी क्रांति हुई तब इनकी माता इन्हे लेकर सत० पीटरबर्ग चली गयी। 1910 में आइसेन्स्टाइन वापस अपने पिता के पास आ गए। पेट्रोगार्ड में इन्होंने अपने पिता के कहने पर वास्तुकार की शिक्षा ग्रहण करने हेतु दाखिला लिया। रूस क्रांति से प्रभावित होकर 1918 में इन्होने अपना पढ़ाई बिच में ही छोड़ दिया। उन्होंने रेड आर्मी ज्वाइन कर  लिया जो की रूस में क्रांति को उस दौर में बढ़ावा दे रही थी। साल 1920 में प्रोलेटकूलत थिएटर मास्को के साथ असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में जुड़े।
जल्द ही वे इस संस्थान में मुख्य लोगों में सुमार हो गये। वहीं से इनकी रूचि जापान के लोकनाट्य काबुकी के प्रति विकसित हुई और इसी की  प्रेरणा ने उन्हें सिनेमा की ओर रुख करने का विचार दिया। यहीं से  उनकी सिनेमा के सफर की शुरुआत होती है।
 
     सर्गेई मिखाइलोविच आइसेन्स्टाइन  - सिनेमा  सिद्धांतकार के रूप में:
 
डी०डबलू०ग्रिफिथ का सिनेमा, लेव कुलशोव के मोंटाज ,और एस्फीर शुभ ( Esfir Shub ) का री-एडिटिंग  का अध्ययन करने के बाद उन्हें ये बात समझ आगयी थी की सिनेमा में टाइम और स्पेस का स्थांतरण कर  के उसके अर्थ में बदलाव लाया जा सकता है। चूँकि उनका मानना था की कलाकार होने के नाते उन्हें अपने देश के नागरिकों के लिए एक नया और बेहतर जीवन प्रदान करना उनका कर्तव्य बनता है, जो वो सिनेमा के माध्यम से लोगों तक अपने विचार को जल्दी पहुंचा सकते थे। जब उन्होने मोंटाज ओफ़् ऐट्रेकसन मेनिफ़ेस्टो  को पढा  तो उसे नकार दिया। उन्होने सिनेमा मे “केवल संवाद के माध्यम से अपनी बात को प्रमुखता से कहे " जाने वाली बात का  भी खण्डन किया । जिसे उन्होने अपने द्वारा प्रस्तुत कि गयी फ़िल्मो के माध्यम से सिद्ध् भी किया।

सर्गेई मिखाइलोविच आइसेन्स्टाइन  का मनना था कि मोंटाज एक द्वन्दात्मक विधा है। मोंटाज एक ऐसी विधा है जिसे द्वन्दात्मक रूप को प्रस्तुत करने मे इस्तेमाल मे लाया जा सकता है। आइसेन्स्टाइन मार्क्स से प्रभावित थे और Dialectical Materialism के नजरिय से वो मोंटाज को  देखते थे। Dialectical Materialism हगेल के द्वारा दिया गया मनोवैज्ञानिक विचार है जिसे नीचे दिय गय चित्र के माध्यम से समझा जा सकता है।
इसे हम इस प्रकार समझ सकते हैं दो  विपरीत बिन्दुओ को मिलाने से एक तिसरा बिन्दु हमे प्राप्त होता है। यहाँ जो तीसरा बिंदु होगा वो दोनों का जोड़ नहीं होगा बल्कि वो दोनों से अलग और बड़ा होगा।
आइसेन्स्टाइन का थ्योरी ऑफ़ मोंटाज द्वन्द और दो विपरीत परिस्थितियों के मेल से एक नए और बिलकुल अलग दृश्य पर थी। इसी को आधार  बनाकर उन्होंने निम्नलिखित पाँच बिंदु दिए :-
१. मेट्रिक मोंटाज़
२. रिदमिक मोंटाज़
३. टोनल मोंटाज़
४. ओवरटोनल मोंटाज़
५. इंटेलेक्टुअल मोंटाज़
 
मोंटाज़ के इस विधा का प्रयोग दृश्य के माध्यम से दर्शकों में तनावपूर्ण वातावरण का निर्माण करने हेतु होता है। प्रस्तुत शॉट में बीट के अनुसार कट लगाए जाते हैं। सारे कट एक लंबाई के होते हैं। इसमें दृश्य की पुनरावृति होती है। इस विधा में निरंतरता को नजरअंदाज कर के मूल भाव और कथासार को प्रमुखता दी जाती है। मोंटाज़ के इस विधा को आइसेन्स्टाइन के द्वारा बनाई गयी फ़िल्म " Battleship Potemkin "  के " मीटिंग द  स्क्वाड्रन " भाग में देखा जा सकता है ,जब शूट के आर्डर दिया जाता है और शिप के इंजन से धुँवा निकलता है इस पुरे दृश्य में मैट्रिक मोंटाज़ को देख कर समझा जा सकता है।
 
 
 
२. रिदमिक मोंटाज़ 
 
इस विधा में मेट्रिक मोंटाज़ के जैसा बराबर हिस्सों में कट नहीं लगाया जाता। इसमें सुचारु रूप से कट लगाया जाता , प्रत्येक दृश्य को मिलाने की योजना से कट का प्रयोग किया जाता है। आसान भाषा में कहा  जाय तो इस दृश्य की एकरूपता को बनाये रखने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इसमें निरंतरता को प्रमुखता दी जाती है। इस प्रकार से फ्रेम का चयन होता है जिससे निरंतरता के साथ-साथ दृश्य की रफ़्तार बानी रहे और उसके अंदर मौजूद द्वन्द को दर्शकों तक सम्प्रेषित किया जा सके। मोंटाज़ के इस विधा को आइसेन्स्टाइन के द्वारा बनाई गयी फ़िल्म " Battleship Potemkin " के "ओडेसा स्टेप " भाग में देखा जा सकता है जब सैनिक सीढ़ियों पर मार्च करते हुए भीड़ पर बंदूक चलाते  हैं। 
 
३. टोनल मोंटाज़
 
इस विधा में भाव को ध्यान में रख कर  कट का प्रयोग किया जाता है। अर्थात इस विधा का प्रयोग दर्शकों पर भावनात्मक प्रभाव जैसे की हसी-खुशी , उदासी , डर जैसे भावों को दर्शकों तक संप्रेषित करने के लिए किया जाता है। दृश्य-श्रव्य दोनों के माध्यम से इसे प्रयोग में लाया जाता है। इसे हम ऐसे भी कह सकते हैं की जब एडिटिंग के माध्यम से किसी विशेष सिन के मूड को दर्शाना। मोंटाज़ के इस विधा को आइसेन्स्टाइन के द्वारा बनाई गयी फ़िल्म " Battleship Potemkin " के तीसरे भाग " ऐन अपील फ्रॉम द डेड " के शुरुवाती दृश्य में धुंध और चमक के माध्यम से दिखाया गया है।
 
 
 
४. ओवरटोनल मोंटाज़ 
 
ओवरटोनाल मोंटाज़ एडिटिंग की विधा नहीं है बल्कि डायरेक्टर की समझ से एडिटर के माध्यम से मेट्रिक , रदमीक और टोनल मोंटाज़ के समग्र प्रयोग से किसी सिन को द्वंदात्मक रूप से दर्शकों तक पहुंचाने की विधा है। इसे ऐसे समझा जा सकता है की विभिन्न प्रकार के मोंटाज का प्रयोग कर  के किसी सीन के कनफ्लिक्ट और उसके थीम को निखार कर प्रस्तुत किया  जाता है। इंटेलेक्टुअल और भावनात्मक दृश्यों को दिखाने  के लिय इसको प्रयोग में लाया जाता है। इस विधा में डायरेक्टर अपने अनुसार म्यूजिक की गति , शॉट का चयन और उसमें कट का प्रयोग करता है।  " Battleship Potemkin " में  फॉग वाले दृश्य का ओवरटोनल अर्थ उदासी होगा।
 
 
५. इंटेलेक्टुअल मोंटाज़

जब हम विभिन्न परिदृश्यों का क्रॉस कट एक साथ कर के मेटाफ़र के माध्यम से दर्शकों तक अपनी बात को पहुंचाने में जिस विधा का प्रयोग करते हैं उसे  इंटेलेक्टुअल मोंटाज़ कहा जाता है। इस विधा का प्रभाव दर्शकों पर शारीरिक नहीं बल्कि मानसिक रूप में पड़ता है। इसके प्रयोग से फ्लिम के चरित्रों पर प्रभाव नहीं पड़ता अपितु दर्शक के सोच और उसके बौद्धिक क्षमता पर पड़ता है। मोंटाज़ के इस विधा को आइसेन्स्टाइन के द्वारा बनाई गयी फ़िल्म " Battleship Potemkin " के "ओडेसा स्टेप " के निष्कर्ष वाले भाग में देखा जा सकता है। जिसमें सिंह की मूर्ति को दहाड़ते और जागते हुए दिखाया गया है जो की रूस की जनता के विरोध और उसके गुस्से को दर्शाता है।  
धन्यवाद!

©शांडिल्य मनिष तिवारी।


 

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