कभी कभी ये दिन उदास सा लगता है। रातें भी तबाह होने लगती हैं। जब साया किसी का साथ छोड़ देता है तो इबादतें भी गुनाह लगने लगती हैं। शायद हमारी उम्मीदें ही कुछ ज्यादा रहती हैं। हम किसी से भी बेवज़ह यूँ ही उम्मीद पाल लेते हैं। लेकिन इज़ाजत लेकर उम्मीद तो लगाई नहीं जाती। फिर किसी से उम्मीद रखना गुनाह क्यों हो जाता है? सोचिए अगर फूल, खुश्बू से उम्मीद ना रखे तो क्या होगा? भँवरा, कली से उम्मीद ना रखे तो क्या होगा? बरसात, बादल से उम्मीद ना रखे तो क्या होगा? सच तो ये है कि सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और यही प्रकृति का नियम भी है। कहा भी गया है कि उम्मीद पर तो दुनिया कायम है।
©नीतिश तिवारी।
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16 Comments
सच है उम्मीद पर ही दुनिया कायम है
ReplyDeleteजी। आपका धन्यवाद।
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२४-०७-२०२१) को
'खुशनुमा ख़्वाहिश हूँ मैं !!'(चर्चा अंक-४१३५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!
Deleteसब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और यही प्रकृति का नियम भी है। बहुत सुंदर।
ReplyDeleteधन्यवाद!
Deleteकभी कभी ये दिन उदास सा लगता है। रातें भी तबाह होने लगती हैं। जब साया किसी का साथ छोड़ देता है तो इबादतें भी गुनाह लगने लगती हैं। शायद हमारी उम्मीदें ही कुछ ज्यादा रहती हैं। हम किसी से भी बेवज़ह यूँ ही उम्मीद पाल लेते हैं। लेकिन इज़ाजत लेकर उम्मीद तो लगाई नहीं जाती।
ReplyDeleteसर आपने तो मेरे मन की बात चुरा ली! एकदम सही कहा आपने उम्मीदें इज्जत लेकर नहीं आती हैं ! हम कुछ ज्यादा ही किसी से उम्मीदें लगा लेते हैं और यहीं उम्मीदें हमारे निराशा का कारण बनती हैं !
वैश्या पर आधारित हमारा नया अलेख एक बार जरूर देखें🙏
बहुत बहुत धन्यवाद!
Deleteसत्य कथन
ReplyDeleteआपका शुक्रिया।
Deleteसुन्दर सृजन।
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteसार्थक सृजन।
ReplyDeleteशुक्रिया।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।