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शब्द नहीं साथ दे रहे | shabd nahi saath de rahe.




 शब्द नहीं साथ दे रहे | shabd nahi saath de rahe.


बहुत दिनों से कुछ लिखने की कोशिश कर रहा हूँ। लेकिन ना ही जज्बातों को महसूस कर पा रहा हूँ, ना ही शब्द साथ दे रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि सब कुछ शून्य हो गया है। वर्तमान बुरा है और भविष्य बदत्तर। चारों तरफ निराशा है, लोग मर रहे हैं, फिर भी जीवन में एक आशा है। एक उम्मीद कि ये कठिन दौर गुजर जाएगा, एक उम्मीद कि वही सवेरा फिर से आएगा। पर वर्तमान अंधेरे ने कई जिंदगियाँ तबाह कर दीं। आज के इस दौर में कब किसके साथ क्या हो जाये, कोई नहीं जानता। 

विनाश की इस घड़ी में,
कौन कैसे जीवन ढूँढे,
धागे इतने उलझ गए हैं,
अब बस ये जल्दी सुलझें।

महादेव सबकी रक्षा करें!

©नीतिश तिवारी।

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16 Comments

  1. सच लिखा है आपने । पर अब आप और मैं क्या कोई भी क्या कर सकता है सिर्फ दूर से चुप चाप देखने के ।

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-4-21) को "श्वासें"(चर्चा अंक 4042) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।

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  3. उम्मीद पे दुनिया क़ायम है नीतिश जी। जी छोटा मत कीजिए। आपने अपने मन का हाल बेलाग कह डाला, यह हौसला भी कुछ कम नहीं।

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  4. महामारी पहले भी आती रही है पर मानव की जिजीविषा के आगे टिक नहीं सकती, समय बदलता रहता है, जितना हो सके हमें स्वयं को तथा अपने परिवार, समाज को स्वस्थ रखने में मदद करनी है

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    1. बिल्कुल सही कहा आपने।

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  5. सच लिखा है
    वाकई इन दिनों मन बहुत दुखी है

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  6. यथार्थ दर्शाती प्रस्तुति ।
    सब कुछ भविष्य में छिपा है।
    आडियो बहुत मोहक।

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  7. सचमुच अभिव्यक्ति कुंठित हो गई है . यह भी एक रचनाकार की एक बड़ी यातना है .लेकिन लिख न पाने की व्यथा को लिखना भी एक रचना ही है .

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