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लड़ने को तैयार है, पूरे जग संसार से,
आशिक़ बनके निकला है, वो अपने घर बार से।
धड़कन उसकी चलती है, महबूबा के प्यार से,
आशिक़ बनके निकला है, वो अपने घर बार से।
चेहरे पर रौनक है आती, उसके ही दीदार से,
आँखों को ठंढक है आती, उसके ही सृंगार से,
सुबहो से भी रौनक है, रौनक है हर शाम से,
आशिक़ बनके निकला है, वो अपने घर बार से।
©नीतिश तिवारी।
12 Comments
वाह
ReplyDeleteशुक्रिया।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (19-08-2020) को "हिन्दी में भावहीन अंग्रेजी शब्द" (चर्चा अंक-3798) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteआपका शुक्रिया।
Deleteवाह
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteवाह बहुत खूब।
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteवाह
Deleteधन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।