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ये ऊपर जो तस्वीर आप देख रहे हैं ये यहाँ लगाने का मन तो नहीं था लेकिन यही आज का सच है।
Lockdown 4 की घोषणा हो चुकी है। कुछ दिन और यानी की 31 मई 2020 तक हमें और आपको अपने घरों के अंदर रहना पड़ेगा। हो सकता है कि 31 मई तक आप लूडो के चार गेम और जीत जाएँ। चार नए पकवान बनाना सीख जाएँ या फिर चार नए वेब सीरीज देखकर खत्म कर दें।
कोरोना जैसी भयंकर महामारी से उत्पन्न हुई परिस्थिति में कुछ लोग घर बैठे बैठे ऊब जा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ हमारे मजदूर भाई बहन अपने घर पहुँचने की राह में ही मौत के मुँह में डूब जा रहे हैं। ये बहुत ही अकल्पनीय और हृदयविदारक परिस्थिति है जिसमें मौत कैसे आएगी उसमें भी गरीबी और अमीरी का भेदभाव है।
इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी कि अमीरों द्वारा हवाई जहाज़ में लायी गयी मौत, गरीबों के हिस्से रेल की पटरियों पर आई। उन्हीं रेल की पटरियों पर मजदूरों के खून से सनी हुई रोटियाँ हमारे निरंकुश सत्ता में बैठे हुए मठाधीशों को दिखाई नहीं देती। वोट बैंक की राजनीति के अवसरवादी तराजू में लोगों को तौलने वाले मोतियाबिंद से पीड़ित नेताओं के चश्में पर सत्ता की ऐसी धूल जमी हुई है कि उन्हें कुछ दिखाई नहीं दे रहा।
अगर दिखाई दे रहा होता तो एक माँ, ट्रॉली बैग पर सोये हुए बच्चे को खींच कर नहीं ले जा रही होती।
लोकतांत्रिक व्यवस्था की अगर परवाह होती और मोतियाबिंद का चश्मा उतर गया होता तो एक पत्नी अपने पति के अंतिम संस्कार में गाँव जाने के लिए नहीं तड़प रही होती। एक आदमी अपने पूरे परिवार को बैलगाड़ी से खुद एक बैल बने हुए नहीं खींच रहा होता।
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सवाल तो पूछे जाएँगे और जवाब भी देने पड़ेंगे। उन सभी सत्ता के ठेकेदारों से जिनकी जिम्मेदारी थी कि इस संकट की घड़ी में मजदूरों को उनके खाने का इंतजाम किया जाय। अगर दो वक्त की रोटी का इंतज़ाम कर दिया गया होता तो शायद मजदूर अपने गाँव की ओर नहीं जाते। पर क्या करोगे साहब, मजदूर हैं इसलिए पैदल चलने पर मजबूर हैं, NRI होते तो हवाई जहाज़ से लाये जाते।
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धन्यवाद!
©नीतिश तिवारी।
14 Comments
बहुत ही अनमोल
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteकेवल एक प्रणाम ... 🙏🏻🙏🏻
ReplyDeleteप्रणाम उन सभी मजदूरों को जो राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देते हैं।
DeleteBht dukhad baat h ye, 1 katu satya aj ki sarkar k hote hue b
ReplyDeleteसत्य को स्वीकारना तो पड़ेगा।
Deleteऐसी तस्वीरें देखकर मन विचलित होता है।
ReplyDeleteबहुत चिन्ताजनक स्थिति है।
सही कहा आपने। मन तो विचलित होता है लेकिन यही आज की तस्वीर है।
Deleteऐसे फोटो हकीकत के करीब हैं पर दुखदाई हैं ...
ReplyDeleteकब जागेगीं सरकारें ...
सरकार तो सिर्फ चुनाव के समय जागती है।
Deleteसही कह रहे हैं आप " आपदा -बिपदा " कोई भी आए शिकार तो ये मजदुर वर्ग ही होते हैं,बचा खुचा मध्यमवर्ग झेलता हैं ये तो कटु सत्य हैं और सबसे शर्मनाक भी। इन कर्मवीरों के बिना दो दिन भी ये अमीरजादे ,ये नेता- अभिनेता ( जो आज इनकी सहायता के लिए आगे नहीं आ रहे ) टिक कर दिखाए तब इन की अहमियत का अंदाज़ा हो ना। यथार्थ लेख ,सादर नमन
ReplyDeleteआपकी प्रशंसा के लिए शुक्रिया।
Deleteविचलित करते दृश्य
ReplyDeleteसही कहा आपने। लेकिन यही सत्य है और सत्य से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता।
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