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शब्दों में वजन हो, बोली में मिठास,
प्रकृति से प्रेम करो, नहीं तो होगा सर्वनाश।
डाली कहती पेड़ से, जुड़ी रहूँगी साथ,
मनुष्य का कुछ भरोसा नहीं, प्रकृति पर है आस।
दोहन करते प्रकृति का, ऐसे हो गए हैं लोग,
हवा पानी अब शुद्ध नहीं ,पकड़ रहा है रोग।
कितना कुछ दिया है प्रकृति ने, देखो चारो ओर,
संसाधन की कद्र नहीं तो भटकोगे मौत की ओर।
©नीतिश तिवारी।
बहुत सुंदर भाव
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteभावपक्ष तो सुन्दर है मगर कलापक्ष लचर है।
ReplyDeleteइसलिए ये दोहे नहीं कहे जा सकते।
आपकी टिप्पणी के लिए शुक्रिया।
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