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तेरी राहें देखते देखते,
कितनी सदियाँ गुजारी मैंने।
सूनी गलियों में जाकर,
सिर्फ ख़ाक ही छानी मैंने।
अब देर ना कर मेरे पास तू आ,
बिंदिया काजल चूड़ी कंगन,
तेरे लिए मँगा ली मैंने।
साथी अब कभी साथ ना छूटे,
रब से यही दुआ माँगी मैंने।
©नीतिश तिवारी।
4 Comments
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (07-01-2020) को "साथी कभी साथ ना छूटे" (चर्चा अंक-3573) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteसुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।