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मेरी हर आरज़ू को तिश्नगी बनाकर रख दिया,
गिरने का डर ऐसा कि पत्थर हटाकर रख दिया,
लब तो आज़ाद थे फिर क्यों उन पर ताले पड़ गए,
मुफ़लिसी के दौर ने मेरी हस्ती मिटाकर रख दिया।
Meri har aarzoo ko tishnagi banaakar rakh diya,
Girne ka darr aisa ki pathar hatakar rakh diya,
Lab to aazad the phir kyun un par tale pad gaye,
Muflisi ke daur ne meri hasti mitakar rakh diya.
©नीतिश तिवारी।
11 Comments
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteलाज़बाब सृजन , सादर नमन आपको
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार।
Deleteआज के कटु सत्य को उजागर करती रचना. मुफ़लिसों का कोई रहनुमा नहीं होता. सुंदर रचना 👏 👏 👏
ReplyDeleteधन्यवाद सुधा जी।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआपका शुक्रिया।
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
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