Pic courtesy: Pinterest.
तुमने कुछ नहीं कहा, ये बरसात भी थम गई। तुम्हारे जाने के बाद अक्सर सोंचता हूँ कि प्यार का मौसम कौन सा था। प्यार मौजूद भी था या बेमौसम बारिश की तरह आया और चला गया। कितनी कहानियों के किरदार सजा कर रखे थे मैंने। पर तुम्हारे जाने के बाद सारे किरदार दम तोड़ने लगे हैं। किताबों पर धूल पड़ गयी है, बगीचों में फूल खत्म हो गए हैं। पर जाते जाते एक वादा करके जाओ। वादा ये की तुम आओगी फिर से। उन्हीं कहानियों के किरदार को ज़िंदा करने के लिए। मुझे ज़िंदा करने के लिए।
©नीतिश तिवारी।
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6 Comments
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (02-08-2019) को "लेखक धनपत राय" (चर्चा अंक- 3415) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका शुक्रिया।
Deleteमौसम ज़िन्दा रखिये...किरदार आते रहेंगे...👌👌👌
ReplyDeleteजी, बिल्कुल सही कहा आपने। धन्यवाद।
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।