आज मन बहुत दुखी है। बस इतना ही लिख पाया।
कैसे कह दूँ यहाँ अल्लाह मौजूद है या भगवान,
हैवानियत का शिकार हो गयी एक बेटी नादान।
राजनीति की रोटियाँ कब तक सेकते रहोगे तुम,
इंसाफ दो बेटी को नहीं तो एक दिन आएगा तूफान।
कैसे हम इस सिस्टम का कर पाएंगे सम्मान,
कुछ बाकी नहीं रहेगा यहाँ ना रहेगा इंसान।
अब किलकारी नहीं गूँजती,
खिलौने एक कोने में पड़े हैं।
कोई बच्चे नहीं आते अब,
गुड़िया मेरी नहीं रही अब।
क्यों ऐसा जुल्म हो गया,
घर सूना हो गया है।
©नीतिश तिवारी।
12 Comments
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 07/06/2019 की बुलेटिन, " क्यों है यह हाल मेरे (प्र)देश में - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत ही दुखद घटना।
ReplyDeleteजी, दुर्भाग्यपूर्ण है।
Deleteमर्मस्पर्शी
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteबिलकुल सही कहा आपने ,मार्मिक रचना
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-06-2019) को "धरती का पारा" (चर्चा अंक- 3361) (चर्चा अंक-3305) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।
Deleteसामयिक और मर्मस्पर्शी रचना
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।