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एक खयाल.... सिर्फ तुम।
तेरी सुनहरी यादों में विचरण करते हुए एक एहसास होता है। हमने रेत पर किले बनाए थे वो ढह गए होंगे। कसूर तुम्हारा था, मेरा था या उस हवा के झोंके का, मालूम नहीं। पर रेत का वो किला बहुत सुंदर था, बिल्कुल तुम्हारी तरह। मोहपाश के बंधन में जकड़ा हुआ प्रेम आखिर कब तक चलता। उसे तो बिखरना ही था, सो बिखर गया। ऊपर से जमाने के ज़ुल्म-ओ-सितम ने हमारे ज़ख्म को और गहरा कर दिया। लेकिन इन ज़ख्मों पर मरहम लगाने को तेरी बातें हैं। मेरे कानों में अभी भी गूँजती हैं तुम्हारी जादुई बातें, वही जो तुमने हमसे कहा था। तुमने कहा था कि मैं तुमसे प्यार करती हूँ और ताउम्र करती रहूँगी। पर शायद हमारे प्यार की उम्र ज्यादा लंबी ना थी। थोड़ी थी पर हसीन थी। तुमने मुझे जीने का मकसद दे दिया। अगर इसे धोखा कहूँगा तो हमारे प्यार की बेइज्जती होगी। रहने दो, फिर लिखूँगा कभी, और जज़्बात, अपने दिल के हालात।
©नीतिश तिवारी।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (29-03-2019) को दोहे "पनप रहा षडयन्त्र" (चर्चा अंक-3289) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteबेहद भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteजारी रखिए...
आपका शुक्रिया।
Deleteजारी रहे प्रेम!
ReplyDeleteजी, जरूर। शुक्रिया आपका।
Deleteसुंदर
ReplyDeleteशुक्रिया।
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