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हमने तरक्की कर ली।
घड़े के शीतल जल से नाता अब टूट गया,
प्यूरीफाइड वाटर से नाता अब जुट गया।
कुएँ के पानी की मिठास अब नहीं रही,
शहर के सप्लाई पानी ने उसकी जगह ले ली।
हाँ, हमने तरक्की कर ली।
मिलने जुलने का नहीं है समय किसी के पास,
वीडियो कॉलिंग में जताते हैं अपना होने एहसास।
हाल चाल पूछने में हमको शर्म आ जाती है,
मिनटों में फेसबुक पर स्टेटस अपडेट हो जाती है।
हाँ, हमने तरक्की कर ली।
पाँव छूने की जगह लोग घुटने छू कर जाते हैं,
पुराने रीति-रिवाज को ये ढोंग बतलाते हैं।
घर में बच्चों के लिए नैनी लगा कर रखते हैं,
बूढे माँ-बाप को वृद्धाश्रम छोड़कर आते हैं।
हाँ, हमने तरक्की कर ली।
लुका छिपी का खेल अब ना जाने कहाँ खो गया,
बच्चों का मनोरंजन वीडियो गेम अब हो गया,
बड़ों का उत्तर देने में पहले हाँ जी हाँ जी करते थे,
अब कुछ भी पूछो तो पब जी खेलते रहते हैं।
हाँ, हमने तरक्की कर ली।
©नीतिश तिवारी।
15 Comments
सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद सर।
Deleteबहुत खूब नितीश जी ,यथार्थ
ReplyDeleteजी, धन्यवाद।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (25-03-2019) को "सबके मन में भेद" (चर्चा अंक-3284) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका धन्यवाद।
Deleteविसंगतियां यही हैं
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
Deleteभाई
ReplyDeleteअच्छा प्रयास है। हालांकि हर नया पौधा बीज के आवरण को तोडकर ही विकसित होता है। पर सचेत रहना जरूरी है।
आपने तुक मिलाने के लिए शब्दों में जो हर्स्व दीर्घ का प्रयोग किया है उससे अर्थ का अनर्थ हो जा रहा कहीं कहीं। जैसे आपने टूट के साथ तुूक मिलाने को जूट लिखा है तो जूट मतलब पटसन होता है जिसका बोरा आदि बनता है और आप लिखना चाह रहे जुट जुड़ने के सेंस में।
सुझाव के लिए धन्यवाद। सुधार कर दिया गया है।
Deleteसुन्दर और सजग। Bade चलो
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
DeleteThanks
ReplyDeleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।