इंतज़ार की इन्तेहा।
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तुमसे मिलने की कोशिश हर बार की थी
खुद पर विजय पाने की भी कोशिश हर बार की थी
पता नही ऐसी कौन सी खता हमने की थी
जो सारी कोशिशें नाकाम हो गयी थी
पर हमने आस न छोड़ा
खुद को न तोड़ा
तुमसे मुँह कभी न मोड़ा
फिर भी तुमने हमसे अपना दिल न जोड़ा
सपनों में ही सही मैंने तुम्हें अपना बना लिया था
रैनो ने मुझे जीना सीखा दिया था
मेरी रूह ने तुम्हारे साये को पास बुला लिया था
तुम्हारे साये ने मुझे तुम्हारे होने का एहसास दिला दिया था
संयोगवश एक दिन तुमसे मुलाकात हुई
न जाने नज़रो में क्या बात हुई
मेरे नैनों से अश्कों की बरसात हुई
न जाने कैसी ये घटना मेरे साथ हुई
मेरे सोये अरमान फिर से जाग रहे थे
तुम्हें पा लेने की चाह में मेरे नैन बरस रहे थे
मुझे लगा दो दिल मिल रहे थे
तुम्हारे साये को छोड़ कर फिर से हम तुम पर फिसल रहे थे
© शांडिल्य मनिष तिवारी।
Bahut khoob..keep it up
ReplyDeleteThanks a lot.
Deleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
Deleteधन्यवाद।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (04-03-2019) को "शिव जी की त्रयोदशी" (चर्चा अंक-3264) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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महाशिवरात्रि की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
रचना शामिल करने के लिए शुक्रिया।
Deleteबहुत बढ़िया। आपको शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
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