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Friday, June 29, 2018
Monday, June 18, 2018
रात की तन्हाईयाँ।
रात की तन्हाईयाँ
और तुम्हारी खामोशियाँ
दोनो एक साथ
मौजूद क्यों हैं।
ये कैसा सितम है
मुझ पर
या कोई ज़ुल्म
किया है हालात ने।
खयालों के ख्वाब
बुनते-बुनते
मैं थक सा गया हूँ
भीड़ में तुम्हें
ढूंढते-ढूंढते
मैं थक सा गया हूँ।
मशाल की तलाश है
पर एक चिंगारी भी
मौजूद नहीं
मैं तुझको कैसे भुला दूँ
ये समझदारी भी
मौजूद नहीं।
©नीतिश तिवारी।
Sunday, June 17, 2018
Sunday, June 10, 2018
तुम्हारी माँग का सिंदूर।
ये जो तुम्हारी माँग
में सिंदूर है ना
ये सिर्फ सिंदूर नहीं
बल्कि मेरे जीवन
का दस्तूर है।
और ये तुम्हारी
माथे की बिंदिया
प्रतीक है मेरी
उन्नति का
प्यार में और
जीवन में भी।
ये तुम्हारी सुरमयी
आँखों का काजल
सम्मोहित करता है
तुम्हें जी भरके
निहारने को
बस तुम्हीं में
खो जाने को।
तुम्हारे होठों की लाली
का ऐसा जादू है
कि शब्द कम पड़
जाते हैं तारिफ में
फिर भी मैं
अपने को कवि
कहता हूँ।
©नीतिश तिवारी।
Wednesday, June 6, 2018
तुम भी कभी हमारे थे।
अकेले दरिया पार किया, मेरा साथी छूटा किनारे पे,
मंज़िल तो छूटनी ही थी, जब रास्ता भटका चौराहे पे।
बिखर गए थे ख्वाब मेरे, पर तुम्ही ने तो सँवारे थे,
याद आता है वो लम्हा, जब तुम भी कभी हमारे थे।
बरसात की बूँदें और तुम्हारे आँसू, दोनों को हमने संभाले थे,
तेरे आँचल की छाँव में, कई लम्हे हमने गुजारे थे।
कभी यकीन ना था कि तुमसे हम बिछड़ जाएंगे,
तेरी मोहब्बत में तुझसे ज्यादा हम खुदा के सहारे थे।
©नीतिश तिवारी।
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