आज खिड़की खोली
तो हवा के एक
झोंके की दस्तक
कमरे में हुई।
और तुम्हारी
मेरे दिल में।
आज लिखने बैठा
तो खयालों के
भँवर में खो
सा गया।
और वो सिर्फ
खयाल नहीं बल्कि
तेरे होने का
एहसास था।
आज रास्ते पर
चलते हुए कुछ
दिखाई नहीं दे रहा।
एक धुंध की
चादर पड़ी हुई है।
जिसमें अपने
जज्बात लिए लिपटी
हो तुम।
आज एक भीड़
को देखा तो
उसमें भी अजीब
एकान्त दिखा।
क्योंकि उस भीड़
में भी मौजूद
थी तुम, सिर्फ तुम।
©नीतिश तिवारी।
8 Comments
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (04-02-2018) को "अपने सढ़सठ साल" (चर्चा अंक-2869) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।
Deleteआप बहुत अच्छा लिखते है जी ......... बधाई
ReplyDeleteApka bahut bahut dhnywaad
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteshukria
Deletevery nice
ReplyDeleteThanks a lot
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।