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अखबार बन जाऊँगा।























तेरी डूबती कश्ती का पतवार बन जाऊँगा,
तेरी मोहब्बत का कर्जदार भी बन जाऊँगा,
आज जी भर के मुझे प्यार कर लो,
नहीं तो कल सुबह का अख़बार बन जाऊँगा।

©नीतिश तिवारी।

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4 Comments

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-09-2017) को "कैसा हुआ समाज" (चर्चा अंक 2722) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    Replies
    1. रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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