तेरे हाथों में मेहंदी,
जो मेरे नाम की थी,
तेरे हाथों से वो,
शायद मिट गयी होगी।
लेकिन मेरे साँसों में,
उस मेहंदी की महक,
ज़िन्दा है आज भी।
वो लाल रंग सिर्फ,
मेहंदी का रंग नहीं था।
मेरी बेरंग जिंदगी का,
एक प्यारा सा उमंग था।
तेरी खूबसूरत हाथों में रची,
उस महकती मेहंदी को,
आज भी देखता रहता हूँ।
बस इसी इंतज़ार में,
एक दिन फिर से,
तुम रचाओगी वो मेहंदी,
अपने साजन के लिए।
©नीतिश तिवारी।
2 Comments
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-04-2017) को
ReplyDelete"सूरज अनल बरसा रहा" (चर्चा अंक-2622)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आपका धन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।