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प्रेम-गीत।


















मैं निश्छल प्रेम की परिभाषा को आज करूँगा यथार्थ प्रिये,
ये प्रेम मेरा भवसागर है, इसमें नहीं है कोई स्वार्थ प्रिये।

मेरा जी करता है हर रोज मैं तुमसे, करूँ एक नया संवाद प्रिये,
कोई मतभेद नहीं कोई मनभेद नहीं, इसमें नहीं कोई विवाद प्रिये।

उलझन भरी इस राह में तुम सुलझी हुई एक अंदाज़ प्रिये,
मेरा रोम-रोम पुलकित हो जाता, कर रहा हूँ प्रेम का आगाज़ प्रिये।

तुम नदी के तेज़ धारा जैसी एक चंचल सी प्रवाह प्रिये,
रोज करता हूँ वंदन प्रभु से, तुमसे ही हो मेरा विवाह प्रिये।

©नीतिश तिवारी।

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3 Comments

  1. रचना शामिल करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया।

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