ना करार है, ना इनकार है,
जब से मिली हो तुम,
बस प्यार ही प्यार है।
अब भूले बिसरे गीत नहीं,
उलझी हुई कोई प्रीत नहीं,
जब से मिली हो तुम,
तुझसे रौशन मेरा जग संसार है।
कभी बगिया में खिली फूल सी,
कभी रेत में उड़ती धूल सी,
कभी आसमां में उड़ती पतंगों सी,
कभी दिल में उठते तरंगों सी।
गीत ना जाने कब ग़ज़ल बन गए,
मेरे सारे ग़म ना जाने कब धूल गए,
जब से मिली हो तुम,
तेरे प्यार में हम अब संवर गए।
©नीतिश तिवारी।
2 Comments
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (02-08-2016) को "घर में बन्दर छोड़ चले" (चर्चा अंक-2422) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Thanks a lot sir Ji.
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।