ऐ मौला मुझे इश्क़ की इज़ाज़त दे दे,
बरसों से की है इबादत मैंने,
ना कभी की शिकायत मैंने,
शाम के ढलते सूरज के साथ,
चाहे थी कोई चाँदनी रात,
डूबा रहा हूँ मैं हर पल।
उसकी ख्वाबों में,
उसकी निगाहों में।
उसकी होठों की मुस्कान में,
उसकी आँखों की पहचान में,
उसकी नगमों की दास्तान में,
उसकी मोहब्बत की इम्तिहान में।
उसके हाथों की लकीरों में,
उसकी उलझी हुई तस्वीरों में,
उसकी शोख भरी अदाओं में,
उसकी बाहों की पनाहों में।
खोया रहा हूँ मैं,
बरसों तक,
ख्वाबों की ताबिर में,
एक रूठी हुई तकदीर में।
ऐ मौला मुझे इश्क़ की इज़ाज़त दे दे,
वरना इस इश्क़ का आकिबत कर दे।
©नीतिश तिवारी।
3 Comments
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (07-05-2016) को "शनिवार की चर्चा" (चर्चा अंक-2335) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Thank you so much sir.
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।