गुजरते वक़्त के साथ मैंने ये समझा है,
हालात कैसा भी हो अपने को जिंदा रखा है,
चाहे महफ़िल हो चाहे हो कोई वीरानी,
हर हालात में मैंने, बस मुस्कुराना सीखा है।
ऐ जिंदगी बहुत तड़पा रही है ना तू मुझे,
तुम्हारे इस तड़प की कसम सुन ले तू मुझे,
अभी जी रहा हूँ तुझे एक जरूरत की तरह,
पर एक दिन जियूँगा तुझे मैं ख्वाहिश की तरह।
©नीतिश तिवारी।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-04-2016) को "नूतन सम्वत्सर आया है" (चर्चा अंक-2307) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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चैत्र नवरात्रों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका आभार।
ReplyDeleteनववर्ष मंगलमय हो।
bahut sundr rachna
ReplyDeleteबढ़िया रचना :)
ReplyDeleteNice poem
ReplyDeleteNice poem
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