मैं आफताब बनके उसको रौशन करता रहा,
वो महताब बनके मुझमें पिघलती रही।
मेरे अल्फ़ाज़ उसकी तारीफ़ में ग़ज़ल बन गए,
उसके जज़्बात ना जाने कब मुझमें घुल गए।
इस मोहब्बत की तलब में इंतज़ार किया है उसका,
जब जब पर्दा उठा, मैंने दीदार किया है उसका।
मेरी ज़िन्दगी रौशन होती गयी उसके नूर से,
खुदा का शुक्रिया जो मिलाया मुझे ऐसी हूर से।
©नीतिश तिवारी।
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