मेरी हसरतों का हिसाब तुम क्या लगाओगे ऐ ज़ालिम,
खयाल आते ही उसे पन्नों पर उतार देता हूँ।
मेरी बदहाली में तो किसी ने साथ ना दिया,
जरा सा होश क्या आया मुझे, लोग देखने आ गए।
मुझे काफ़िर बना के ज़माने ने बेदखल कर दिया,
हमने तो थोड़ी सी इल्तज़ा की थी मोहब्बत के खातिर।
जरा सी बेरुखी क्या दिखाई वो हमसे दूर हो गए,
अरे कश्ती भी नहीं करता दुआ समंदर को छोड़ जाने का।
©नीतिश तिवारी।