वो सपने मे आकर कहती है,"तुम इतना सपना क्यूँ देखते हो?" मैं सिर्फ़ इतना कह पता हूँ,"तुम जो हर रोज़ आती हो यहाँ." न जाने कौन सी कसक है तेरी यादों मे, जो मैं तुझे देखे बिना नही रह सकता. कोई खता हो जाए तो माफ़ कर देना मगर तुम्हारी खूबसूरती को बयान किए बिना नही रह सकता.
©नीतीश तिवारी
2 Comments
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (07-06-2015) को "गंगा के लिए अब कोई भगीरथ नहीं" (चर्चा अंक-1999) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
वाह
ReplyDeleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।