अब और नहीं कर सकता मैं इंतज़ार , क्यूंकि मुझे हो गया है तुझसे प्यार, तुम भी आ जाओ कर लो इकरार , नहीं तो फिर से आ जायेगा वो इतवार। दुनिया मुझे कहती है मोहब्बत में बीमार, क्यूंकि साथ मिला है तेरा मुझे बेशुमार , तेरे दरवाज़े पे बैठा है एक पहरेदार, हम कैसे जा पाएंगे छोड़कर घर-बार।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (16-03-2015) को "जाड़ा कब तक है..." (चर्चा अंक - 1919) पर भी होगी। -- सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। -- हार्दिक शुभकामनाओं के साथ... सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
6 Comments
बहुत सुंदर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : बीत गए दिन
आपका धन्यवाद
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (16-03-2015) को "जाड़ा कब तक है..." (चर्चा अंक - 1919) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी रचना चर्चा मंच पर शामिल करने के लिए आपका धन्यवाद
Deleteप्रेम में सब कुछ करना पड़ता है ... पहरेदार हो तो भी जाना होता है ...
ReplyDeleteजी बिल्कुल सही कहा आपने...आपका शुक्रिया.
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।