जरुरत थी या मजबूरी , जो तुमने निभायी ये दूरी। दस्तूर तुम्हारा ऐसा था , मैं चाँद कि आस में जगा था। एक छोटी सी नादानी थी , जो रूठी हुई कहानी थी। एक मौसम जो मेरे साथ था , एक उलझन जो तेरे पास था। मेरा जिस्म तेरी पनाह में था , पर तेरा रूह न जाने किसके पास था।
5 Comments
सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteआपका मैं अपने ब्लॉग ललित वाणी पर हार्दिक स्वागत करता हूँ मैंने भी एक ब्लॉग बनाया है मैं चाहता हूँ आप मेरा ब्लॉग पर एक बार आकर सुझाव अवश्य दें...
bahut bahut dhnywad
Deleteसुन्दर रचनायें।
ReplyDeleteमेरा जिस्म तेरी पनाह में था ,
ReplyDeleteपर तेरा रूह न जाने किसके पास था।
bahut khoob likha hai.
shubhkamnayen
Thank u so much
ReplyDeleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।