उस टूटे हुए शीशे की औकात क्या,
खुद को देखने के लिए तेरा चेहरा ही काफ़ी है.
उस बिखरे हुए पत्ते की बिसात क्या,
खुद को समेटने के लिए तेरा आँचल ही काफ़ी है
उस सूखे हुए सागर की सौगात क्या,
खुद को डुबोने के लिए तेरा हुस्न ही काफ़ी है.
उस बिन मौसम बादल की बरसात क्या,
खुद को भिगोने के लिए तेरे आँसू ही काफ़ी हैं.
उस ठहरे हुए वक़्त की हालात क्या,
खुद को संभालने के लिए तेरी मोहब्बत ही काफ़ी है.
7 Comments
बहुत सुंदर----
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति
नववर्ष की हार्दिक अनंत शुभकामनाऐं----
aapka aabhar..
Deleteबहुत खूबसूरत ग़ज़ल .......!!!
ReplyDeletebahut bahut dhnywad ..
Deleteवाह...लाजवाब प्यार-भरी रचना...बहुत बहुत बधाई....
ReplyDeleteनयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो
thanks a lot...
Deletebahut acha
ReplyDeleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।