तेरे शहर का मिज़ाज़ देखा ,
लोग बदनाम हैं एक नाम के खातिर।
उन परिंदो के पैर अब तक भटकते है ,
शायद उनका आशियाना अब भी अधूरा है।
साँझ ढलते ही दिल में एक तलब सी जगती है ,
रात में किसी परी का इंतज़ार हो जैसे।
तुम्हे आज़माने कि ख्वाहिश है तो किसी और से मिल ,
मेरे दिल के जज्बात अब खैरात नहीं रहे।
प्यार के साथ
आपका नीतीश
4 Comments
utam-***
ReplyDeletedhanywad aapka
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआभार।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।