पहले हिमाकत की थी,
अब फरियाद करता हूँ,
जा तुझे मैं अब इस,
पिंजरे से आज़ाद करता हूँ,
उन आँखों में मत बसना ,
जो गंगा यमुना बहाती हैं,
उन साँसों में मत घुलना,
जो तेरी आहट से डर जाती है.
जब दीप जला अंधकार मिटा,
फिर भी ना गया तेरा साया,
जब सावन की हरियाली आई,
तब कोई अपना हुआ पराया.
ये मेरी बेबसी है या कमज़ोरी,
मिलन की चाहत अब भी है अधूरी,
आरज़ू दिल की दिल में दबने लगी,
अश्कों की धुन्ध फिर से सजने लगी.
©नीतिश तिवारी।
4 Comments
बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : कावड़ : लोकमन का उत्कृष्ट शिल्प
thanks a lot sir ji..
Deleteलाज़वाब ......बेहतरीन रचना बेहद खूबसूरती से प्रस्तुत किया है आपने ।
ReplyDeleteaapka bahut bahut dhnywad
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।