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Development of india has been stopped so has my life...


जी हाँ, सही पढ़ा आपने. भारत का विकास रुक गया है इसलिए मेरी भी ज़िंदगी थम सी गयी है.अगले साल मेरठ मे रहते हुए मुझे दस साल हो जाएँगे और कॉंग्रेस की केंद्र सरकार को भी सत्ता में आए हुए.(अब भी आपकी शक है क्या कि मुलायम सिंह यादव और मायावती समर्थन वापस ले लेंगे और सरकार गिर जाएगी,अरे ये तो ऐसे नेता हैं जिनका कॉंग्रेस के साथ आकर्षण बल का प्रभाव चुंबक से भी ज़्यादा है.)

मुझे आज भी याद  है की मई 2004 मे सरकार का गठन हुआ था और जून में मैं मेरठ आया था.मुझे भी उम्मीद थी अपनी ज़िंदगी से की नये जगह पर भी ज़िंदगी अच्छी तरह से चलती रहेगी,ठीक उसी प्रकार जैसे नये सरकार से लोगों को उम्मीद थी.लेकिन हम अगर इक्के दुक्के बदलाव को छोड़ दें तो ना ही देश मे और ना ही मेरी ज़िंदगी मे बड़ा बदलाव आया है.ऐसा लग रहा है मानो सबकुछ भगवान भरोसे चल रहा है.

लेकिन एक फ़र्क है, मैं तो कम से कम सार्वजनिक मंच पर अपने विचार वयक़्त करता तो हूँ, पर अफ़सोस हमारे मनमोहन जी ने पिछले 9 सालो मे कितनी बार अपने विचार वयक़्त किए हैं वो हम सब जानते हैं.
अब बताइए सरकार ने इतनी महंगाई बड़ा दी है कि अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के बारे मे भी दस बार सोचना पड़ता है, ख्वाहिशों को पूरा करना तो दूर की बात है.मनमोहन जी जब से प्रधानमंत्री बने हैं तब से 642 करोड़ रुपए (RTI  के अनुसार) सिर्फ़ हवाई यात्रा पर खर्च कर चुके हैं.
अगर मैं अपने हिस्से का पैसा अलग करूँ तो कम से कम दो चार कंप्यूटर लॅंग्वेज तो ज़रूर सिख लेता ,five star  होटल मे डिनर भी हो जाती ,और कुछ नही तो एक बार मुंबई जाकर दिया मिर्ज़ा से मिलकर तो ज़रूर आ गया होता.लेकिन नही इनको तो हमारे अरमानो पर पानी फेरने की ज़िद पड़ी हुई थी,

लेकिन एक बात कहना चाहूँगा कि,

तुम चाहे तूफ़ानो को जितनी इज़ाज़त दे दो,
लेकिन हमे भी ज़िद है यहीं आशियाँ बनाने कि.

अरे इतनी बार तो महबूबा भी धोखा नही देती,जितनी बार इस सरकार ने देश की जनता को पिछले 9 सालो मे दिया है.हमारे प्रधानमंत्री सदन मे शायराना अंदाज़ मे कहते हैं की मैं तो मजबूर हूँ.अब इन्हे कौन समझाए की शायरी करने का काम हमारा है इनका नही.अगर इन्होने बस अपना काम किया होता तो आज ना जाने कितने लोगों का भला हो गया होता.
लेकिन एक बात याद रखिए की अगर आप मजबूर हैं तो ठीक है लेकिन देश की जनता मजबूर नही है.

जाते जाते बस इतना कहना चाहूँगा कि,

शान-ए-जंगल शेर सही, कब तक रहेगा,
सत्ता परिवर्तन को एक हीरा जन्म ले चुका है.

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धन्यवाद!

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