आशाओं की किरण थी, बहारों का शमा था,
दर्जनों सपने थे, हज़ारों ख्वाहिशें थी,
ना रुकने का जज़्बा था, ना हारने की हिम्मत,
कुछ नये दोस्त मिले, कुछ पुराने छोड़ गये,
किसी से वफ़ा मिली तो किसी से दगा मिली,
फिर भी हम चलते रहे, मंज़िल की तलाश में,
पर हम आज भी वही हैं ,जो कल हुआ करते थे,
और कल भी वही रहेंगे जो आज हुआ करते हैं।
©नीतिश तिवारी।
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