जमाना सो रहा था पर जाग रहे थे हम,
खुद की परछाई से अब भाग रहे थे हम,
अँधेरे का डर दिखाके तुम जीत जाओगे,
एक जमाने में कभी आग रहे थे हम।
हाल उसका ना पूछो जो छोड़कर चला गया,
मेरे पास नहीं तो शायद वो अपने घर गया,
उसकी तस्वीर दिखाकर उसका रास्ता पूछते हो,
मुझे नहीं मालूम वो इधर गया या उधर गया।
©नीतिश तिवारी।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 03 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteरचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।
Deleteबढ़िया
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
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ReplyDeleteजमाना सो रहा था पर जाग रहे थे हम,
खुद की परछाई से अब भाग रहे थे हम,
अँधेरे का डर दिखाके तुम जीत जाओगे,
एक जमाने में कभी आग रहे थे हम।
गूढ़ अर्थ समेटे इन पंक्तियों की जितनी भी तारीफ करें कम होगी। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय नीतीश जी।
बहुत बहुत धन्यवाद पुरुषोत्तम जी।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (05-02-2020) को "आया ऋतुराज बसंत" (चर्चा अंक - 3602) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत धन्यवाद सर।
Deleteबहुत ही अच्छी रचना आपने लिखी है सही सही पंक्तियां हैं वह उधर गया या इधर गया सभी अपने आप में व्यस्त हैं सभी दौड़ती हुई जिंदगी के हमसफर बने हुए हैं बहुत सारे अर्थों को समेटे हुए खूबसूरत रचना
ReplyDeleteधन्यवाद अनिता जी।
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