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तुम याद आती हो।
भोर की पहली किरण के साथ
कड़ी धूप की तपन के साथ
बादल से भरे गगन के साथ
रातों में ठंढी पवन के साथ
तुम याद आती हो।
तन्हाई के वीरानों के साथ
महफ़िल के तरानों के साथ
मेरे अनकहे फ़सानो के साथ
हर खूबसूरत नज़रानो के साथ
तुम याद आती हो।
मेरी बचकानी नादानी के साथ
नए दौर की कहानी के साथ
उस रूठी हुई कहानी के साथ
अपनी वो मनमानी के साथ
तुम याद आती हो।
मेरी हर इबादत के साथ
अपनी हर शिकायत के साथ
तेरी मोहब्बत की दावत के साथ
छोटी छोटी शरारत के साथ
तुम याद आती हो।
©नीतिश तिवारी।
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (12-04-2019) को "फिर से चौकीदार" (चर्चा अंक-3303) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
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