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‌बदलते मौसम में प्यार के रंग।












Image courtesy : Google.







‌बदलते मौसम में प्यार के रंग।

‌गर्मी आ गयी है, पर ये मौसम मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता । शायद इसलिए क्योंकि गर्मी की शुरूआत बसंत ऋतु के बाद होती है। बसंत में पेड़ से पुराने पत्ते अलग हो जाते हैं। लेकिन तुम मुझसे अलग होकर फिर मुझमे समाने का नाम नहीं लेती हो। मौसम की तरह खुद को तुमने भी बदल दिया है। कौन से रिवाज़ का चलन शुरू करना चाहती हो। इतना इंतज़ार तो धरती को सूरज भी नहीं करवाता। मेघ की बूंदे धरती पर एक दिन बरस ही जाती हैं। लेकिन तुम्हें तो आँसू का शौक है ना। तो इस शौक को पूरा कर लेना। लेकिन एक बात जान लो, इस बार आँसू मेरे आँखों से भी निकलेंगे। दोनों की मजबूरी यही रहेगी कि आँसू पोछने के लिए एक दूसरे के पास नहीं रहेंगे। पर इसका जिम्मेदार तुम सिर्फ मुझे मत ठहराना। पूछना अपने दिल से कभी कि ये दीवाना तुम्हें कितना प्यार करता है। हाँ, आज भी करता हूँ उतनी ही मोहब्बत। आज भी।

ये भी पढ़िए : एक खयाल- सिर्फ तुम।

©नीतीश तिवारी।

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10 Comments

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 4.4.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3295 में दिया जाएगा

    धन्यवाद सहित

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (05-04-2019) को "दिल पर रखकर पत्थर" (चर्चा अंक-3296) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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  3. बहुत सुन्दर आदरणीय
    सादर

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद।

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