आज कयामत की रात है, और तुम भी हो.
आज बग़ावत वाली बात है, और तुम भी हो.
आज उलझे हुए ज़ज्बात हैं, और तुम भी हो.
आज बिखरे से हालात हैं, और तुम भी हो.
आज मौसम में बहार है, और तुम भी हो.
आज साँसों में खुमार है, और तुम भी हो.
आज कोयल करती पुकार है, और तुम भी हो.
आज फिर से इतवार है, और तुम भी हो.
आज देश में फैला भ्रष्टाचार है, और तुम भी हो.
फिर भी हम बेरोज़गार हैं, और तुम भी हो.
nitish tiwary.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (27-10-2014) को "देश जश्न में डूबा हुआ" (चर्चा मंच-1779) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी रचना को सराहने और चर्चा मंच पर शामिल करने के लिए आपका आभार.
DeleteAaj hum berozgar hain aur tum bhi ho gazab.. Umda rachna!!
ReplyDeletethank you so much pari ji
Deleteबहुत खूब तिवारी भाई
Deleteऐसे गजलों को आवाज की जरूरत है
शुक्रिया।
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